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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (18) जली कटी सुनाना ( मुहावरों की दुनिया )



शीर्षक = जली कटी सुनाना



पिछले मुहावरें को लेकर मानव के मन में जो भी प्रश्न थे, वो सब उसने अपने दादा से पूछ लिए थे, जिसके चलते उस मुहावरें का अर्थ उसे अच्छे से समझ आ गया था, ऐसे ही सेर करते करते वो पहले खेत पर गए, वहाँ थोड़ी देर निगरानी रखी और फिर घर की और चल दिए


घर आकर देखा तो बहुत सारी औरतों का घर पर मजमा लगा हुआ था, पूछने पर पता चला तो सुष्मा जी ने बताया की उनकी बहु गांव की औरतों को स्त्री सम्बंधित बीमारियों के बारे में बता रही थी और उन्हें उनसे कैसे बचा जाए वो भी बता रही थी, जिस तरह की धारणाएं हम लोगो ने बना ली है, बिना कुछ सोचे समझें ही अपने आप से ही नीम हकीम बने फिरते है, उन्ही के बारे में हमारी बहु बता रही थी, क्यूंकि वो एक महिला चिकित्स्क है, वो महिलाओं से संभंधित बहुत सी बीमारियों का इलाज जानती है, गांव की औरतों को जब पता चला पहले तो वो हिचकिचा रही थी लेकिन बाद में हिम्मत करके वो आज हमारे घर आ गयी उम्मीद करती हूँ सबको अच्छा लगा होगा और जो जो भी उनके प्रश्न होने उन्हें उनके जवाब मिल गए होंगे


थोड़ी देर बाद पूरा घर खाली हो गया, राधिका भी थोड़ा थक गयी थी और कमरे में जाकर लेट जाती है, पता ही नही चला की कब उसकी आँख लग गयी और वो सो गयी, उसे शायद आशीष की याद आ रही थी, काफी दिन हो गए थे उसने उससे बात नही की थी


जब सुषमा जी ने खाने के लिए बुलाया तब जाकर उसकी आँख खुली, और वो बाहर आयी

बाहर आकर उसे अच्छा लगा, मानव भी खुश था खाना खा कर सब लोग आराम करने चले गए


देखते देखते कब शाम हो गयी, गांव में फिर से रौनक लोट आयी थी, सब लोग आँगन में बैठ कर शाम की चाय का आंनद ले रहे थे


राधिका ने मानव से उसके अगले मुहावरें के बारे में पूछा तो मानव ने बताया कि आज उसे एक और मुहावरें का अर्थ पता चल गया है, और अब अगला मुहावरा है " जली कटी सुनाना "

राधिका ने पहले उस मुहावरें का अर्थ समझाते हुए बोली " बेटा इसका अर्थ होता है, किसी को बुरा भला कहना, आओ मैं तुम्हे इस छोटी सी कहानी से समझाती हूँ,


एक लड़की थी, जिसका नाम  मुस्कान था, जैसा उसका नाम था वैसा ही उसका स्वभाव था, बेहद ही ज़िंदा दिल लड़की थी, अपनी बातों से सबका दिल जीत लेती थी, उसके अलावा उसकी दो बहने और एक छोटा भाई भी था 


फिर एक दिन उसकी जिंदगी में एक अजनबी की आमद हुयी, उसे देखने के लिए लड़के वाले आये, लड़का अच्छा पढ़ा लिखा था, मुस्कान के लिए उससे अच्छा लड़का मिल पाना मुश्किल था इसी सोच के साथ उसके माता पिता ने जल्द ही उन दोनों की शादी का फैसला कर लिया


और आखिर कार वो दिन आ गया जब उसकी और उस लड़के की शादी होना थी, घर, मंडप सब सजा हुआ था, घर मेहमानों से भरा हुआ था, चारों और खुशियाँ ही खुशियाँ थी, बारात भी आ चुकी थी

वरमाला की रस्म हो चुकी थी, तय धनराशि के अनुसार दान दहेज़ भी दे दिया गया था, सब अच्छा जा रहा था लेकिन तब ही न जाने लड़के के पिता ने, मुस्कान के पिता से कहा " कि हमारे यहाँ, बारतियों को खाली हाथ नही ले जाया जाता है, दुल्हन के घर से इसलिए आपको उन्हें कुछ न कुछ देना होगा वो भी सोने या चांदी का "


उसके पिता की वो इकलौती बेटी नही थी, जिसका घर बसाने के लिए वो सब कुछ लुटा देते, इसलिए उन्होंने मना करते हुए कहा " भाई साहब, मेरी जितनी हैसियत थी मैने उतना कर दिया, मुस्कान के अलावा मेरी दो बेटियां और एक बेटा भी है, मैं आपकी बात की इज़्ज़त रखता हूँ, और हम भी घर आये मेहमानों को खाली हाथ नही भेजेंगे लेकिन सोना या चांदी दे पाना इतने लोगो को मेरे बस की बात नही है, आपने पहले बताया भी नही था, अगर बता देते तो मैं कुछ न कुछ कर लेता "


सामने खडे उसके समधी जी ने कहा " इतनी तो समझ आपको भी होना चाहिए, बेटी ब्याह रहे है तो उसके ससुराल वालों का कुछ तो ख्याल रखना आपकी ज़िम्मेदरी है, सिर्फ दाने पानी से लोगो का मुँह बंद नही होगा, बाते तो हमें सुनने को मिलेंगी, कि न जाने कहा अपने बेटे की शादी कर दी जिन्हे मेहमानों की इज़्ज़त करना नही आती है, सिर्फ खिला पिला देने से कुछ नही होता है समधी जी, और रही बात दहेज़ की तो वो आपकी बेटी ही इस्तेमाल करेगी हमारा उसमे क्या लेना देना, मेहमान सब आज या कल को अपने अपने घर चले जाएंगे और फिर हमारे मुँह पर थू थू करेंगे इस तरह खाली हाथ लौटने पर "

"मैं जो कर सकता था कर दिया, अपनी अब तक की जमा पूँजी अपनी बेटी का घर बसाने में लगा चूका हूँ, आगे आपकी मर्ज़ी, आप भी बेटी के बाप है और इस नाते आप मेरी मजबूरी को समझेंगे " मुस्कान के पिता जी ने कहा


उस समय तो मामला ठंडा पड़ गया था, बारात कैसे न कैसे करके विदा हो गयी, बारात के साथ आये मेहमानों को मुस्कान के घर वालों ने अपनी हैसियत के हिसाब से उपहार दे दिए थे


मुस्कान के पिता को लगता था, कि मामला शांत हो गया है लेकिन वो नही जानते थे कि ये तो एक तुफान के आने की शुरुआत है, जिसका सामना उनकी बेटी को करना पड़ेगा


कुछ दिन बाद ही मुस्कान को अपने ससुराल में जली कटी सुनने को मिलने लगी, उसे बुरा भला कहा जाने लगा, हर दम हर पल ख़ुश रहने वाली मुस्कान अब बुझी बुझी रहने लगी थी, सब कुछ तो दे दिया था उसके पिता ने उसे अपने घर का करने के लिए, लेकिन फिर भी उसे जली कटी सुनने को मिलती रहती बस इस वजह से की उसके पिता ने मेहमानों को सोना या चांदी का कोई उपहार नही दिया था, लोगो को बाते बनाने का मौका दे दिया था


बेचारी फ़स कर रह गयी थी, घर वालों को भी नही बता सकती थी, क्यूंकि वो उन्हें परेशान करना नही चाहती थी, क्यूंकि दो साल हो गए थे उसकी शादी को और उसके पिता अभी भी लोगो का उधार नही चूका पा रहे थे, और अभी उसकी दो छोटी बहने भी थी जो की कुछ साल बाद शादी के लायक होने वाली थी


बस इसी सोच विचार के चलते उसने कभी भी कोई बात अपने से अलावा किसी को नही बताई, जो कुछ भी बुरा भला वो सुनती उसे अपने तक ही सीमित रखती, लेकिन कब तक, आखिर इंसान थी वो उसे भी बुरा लगता था, रोज हर बात को लेकर जली कटी सुनना वो थक गयी थी ये सब बर्दाश्त करते करते, अब तो उसका पति भी उसे न जाने क्या कुछ कहने लगा था,


बेचारी गुमसुम सी रहने लगी थी, और एक दिन थक हार कर अपने आप से लड़ते लड़ते, जली कटी बातों को बर्दाश्त करते करते, दूसरों को खुश रखने के खातिर खुद पर जख्म खा खा कर थक गयी थी और एक दिन वो कर बैठी जो करना आसान नही

उसने खुद को फांसी के फंदे पर लटका लिया, और निजात पाली इस दुनिया से और इस दुनिया के लोगो से जिनकी नज़र में दूसरों को खुश करना ज्यादा अहम है, अपनी खुशियों को चूल्हे में झोंक देने से


राधिका की आँखे नम हो गयी थी, और वो वहाँ से उठ कर रसोई में चली गयी बहाना बना कर

सुष्मा जी उसके पीछे गयी तो देखा वो रो रही थी, पूछने पर पता चला की वो लड़की मुस्कान, राधिका की सबसे अच्छी दोस्तों में से एक थी, जो की अब नही रही

सुष्मा जी ने उसे अपने सीने से लगाया और उसे दिलासा दिया, सुष्मा जी के पास भी कोई लफ्ज़ नही थे जिनके सहारे वो उसे समझा पाती


मुहावरों की दुनिया हेतु 








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2 Comments

Varsha_Upadhyay

06-Feb-2023 05:37 PM

शानदार

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